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लोककथा संग्रह

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बाम्हण अर बाणिया: हरियाणवी लोक-कथा

एक बणिया घणा ऐ मूजी था वा रोज गुवांडा मैं जाकै रोटी खाये करै था अर उसकै घरां किसी बात की कमी नी थी। सारे गुवांड उसतै कतराण लाग्ये। एक दिन उसतै किस्सै नै भी रोटी ना दी। वा भूखा मरदा घरां कान्हीं चाल पड्या। रास्ते मैं उसने एक पीपल का पेड़ देख्या जिसपै बरबन्टे लागर्ये थे।

भूख का मार्या वा बरबन्टे खाण खात्र पेड़ पै चढ़ग्या। जब वा पेड़ पै तै उतरण लाग्य तो उसका सारा शरीर कांबण लाग्या। वा भगवान आगै हाथ जोड़ कै बोल्या के हे भगवान मन्नै कदे किस्सै तै रोटी नी खिलाई तौं मन्नै ठीक-ठाक नीचे तार दे मैँ तेरे नाम पै सो बाम्हणां नै जिमाऊंगा वा ढेठ सा करकै थोड़ा सा नीचे आग्या तो बाणिया कहन लाग्या अक् ईब तो मैं 90 बाम्हणां नै जिमाऊंगा। इसी तरियां वा नीचै आन्दा गया अर बाम्हणां ने कम करदा गया। जब वा लवै सी आग्या तो उसने आंख मीच कै छलांग मार्यी वा सहज से सी जा पड्या। बणिया कहण लाग्या अक् तन्नै मैं नीचै तो गेर ए दिया, फेर तेरे नाम पै किस्सै बाम्हणां नै क्यूं जिमाऊं। इतनी कहकै बाणिया घरां कान्हीं चल पड्या।

या बात किसी दूसरे बाम्हण नै सुण ली। वा बाणिये तैं पहले घरां जाकै बाणनी तै बोल्या अक् बणिया नै सो बाम्हण जिमाणे ओट राख्ये सैं तोल करकै खाणा बना दे। बाणनी नै तो तोल करके खाणा बणा दिया। सारे बाम्हण उसके खाणा खाकै आये।

जब बणिया घरां आया तो बाणनी उसतै पूछण लाग्यी अक् जोण सै थानै 100 बाम्हण ओटे थे उन तैं मन्नै खाणा खिला दिया। इतणा सुणदे बाणिया कै तो ताप चढ्ग्या वा बाम्हणां कै लड़ण खात्र गया। बाम्हण नै भी अपनी बाम्हणी सिखा दी अक् जब बणिया उरै आवै तो थाम कह दियो अक् थानै बाम्हण तै इसा खाणा खुवाया वा तो आन्दे ए मरग्या था। ईब म्हारे बालकों का हे होगा। बाणिया जद उनकै घरां आया तो बाम्हणी उसके सिर होग्यी के तन्नै मेरा बाम्हण मार्या सै बाणिया नै तो पीछा छुड़ाणा मुशकल होग्या।

एक दिन बाम्हण बाणनी न मिलग्या। बाम्हणी बोल्यी के दादा थाम तो मरग्ये थे फेर भी थाम उरै फिरो। बाम्हण बात समझाया, वा कहण लाग्या अक् मैं तो सुरग मैं तैं बालकां का पता लेण आया सूं। उस बाणनी की भी छोहरी मर्यी थी व उसनै घणा ए प्यार करै थी। वा कहण लाग्यी अक् पण्डत जी ईब थाम कद जावोगे। बाम्हण कहण लाग्या अक् मैं तो ईब मिलदा ए जाऊंगा वा कहण लाग्यी अक् ईब कै आन्छे हाण म्हारी छोहरी का भी पता ल्याईए। बाम्हण तो आगले दिन बाणनी लवै जा पोंहच्या अर कहण लाग्या अक् तेरी छोहरी नै कपड़े-लत्ते अर रपईये मंगाये सैं। वा घणी तंगी मैं रह रही सै। बाणनी ने तो जहान का समां बांध दिया। जब बणिया नै पता लाग्या तो उसके सुणदे के प्राण लिकड्ग्ये। कुछ दिनां पाछै बाम्हण बाणनी नै फेर मिलग्या। बाम्हण कहण लाग्या अक् तेरी छोहरी ठीक-ठाक सै। मैं तो ईब जमाए र्हण खात्तर उरै भेज दिया सूं।

(शंकरलाल यादव)

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साभारः लोककथाओं से साभार।

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